-झुग्गी झोपड़ी में आज भी बिता रहे हैं नारकीय जीवन
-गरीबों की हालत जस की तस नेता राजनीति चमकाने में जुटे
-20 वर्षों से वंचित समाज की लड़ाई लड़ने का छाती पीट कर करते हैं ऐलान
-निरीह जनता को ठग कर फैलाया करोड़ का साम्राज्य
-शोषित समाज की हालत आज भी जस की तस
चकिया, चंदौली। तहसील क्षेत्र में गरीबों, शोषितों,वंचितों की राजनीति करने वाले एक नेता न्याय दिलाने के नाम पर लगातार कई वर्षों से सक्रिय हैं। लेकिन गरीबों का कितना कल्याण हो पाया है, इसकी बानगी देखनी हो तो चकिया तहसील क्षेत्र स्थित आदिवासियों, वनवासियों व दलित समाज के घर चले जाइए, जिनके मकान आज भी झोपड़ियां के रूप में मिल जाएंगे। वहीं झंडा डंडा लेकर लगातार धरना प्रदर्शन आंदोलन करने वाले नेता करोड़ों के आलीशान मकान में रह रहे हैं। स्थिति यह है कि गरीबों को न्याय दिलाने के नाम पर शोषण करने वाले नेता दलाली कर गरीबों का हक दिलाने के नाम पर जनप्रतिनिधियों से सौदेबाजी करते हैं, तथा अपना उल्लू सीधा कर अपनी जेब भर रहे हैं। वही झंडा लेकर धरना प्रदर्शन में पीछे चलने वाली गरीब व निरीह जनता अपने आप को ठगा महसूस कर रही है।
सूत्रों की माने तो भ्रष्टाचार के खिलाफ खबर छपने पर कार्यवाही का हवाला देकर यही राजनेता जन प्रतिनिधियों से सौदेबाजी करते हैं। भ्रष्टाचार के उजागर होने के डर से जनप्रतिनिधि ऐसे बिचौलियों को पैसा देकर अपना उल्लू सीधा करते हैं। एक कहावत कही गई है की राजा को पता नहीं मुसहर बन बाट लिए। उसी तर्ज पर दलाली करने वाले लोग नेतागिरी की ताकत का खौफ दिखाकर जनप्रतिनिधियों से प्रतिमाह 500 रुपए वसूली करते हैं। दूसरी ओर गरीब जनता को उनका हक अधिकार व न्याय दिलाने के नाम पर अपने पीछे-पीछे घूमाते हैं, करोड़ों का साम्राज्य खड़ा कर लेते हैं।
दूसरी ओर गरीब जनता की स्थिति आज भी जस की तस है। जिसकी बानगी देखनी हो तो आप चंद्रप्रभा के पर्वतीय क्षेत्र नदियों के किनारे बसे गरीब वनवासियों, आदिवासियों तथा दलित समाज के गांव की ओर रुख कर सकते हैं। बुनियादी सुविधाओं के नाम पर आज भी उनके साथ मजाक हो रहा है, ना तो सरकार ही उनकी सुधि ले रही है, नहीं गरीबों की राजनीति करने वाले ऐसे मक्कार नेता।
पड़ोसी प्रदेश से आकर वंचित दलित शोषित समाज की राजनीति के नाम पर पिछले कई वर्षों से खेल लगातार चल रहा है। एक तरफ राजनेता जिनके पास कुछ नहीं था, उनके पास करोड़ों का साम्राज्य फैला हुआ है, वहीं दूसरी ओर राहत की उम्मीद लगाए जनता आज भी डंडे में झंडा लगाकर उनके पीछे घूमने को विवश है। जिसका फायदा उठाकर ऐसे लोग ठगी का खेल कर रहे हैं।
फर्जीआंदोलन के नाम पर प्रशासन पर दबाव बना रहे हैं,जो अति निंदनीय व घृडित कार्य है। आपको बता दें कि कई वर्षों पूर्व चंद्रप्रभा की जंगलों में नक्सली आंदोलन की शुरुआत भी इसी प्रकार गरीब लोगों को हक दिलाने के नाम पर बरगला कर की गई थी। इसके बाद से चाहे सरकार हो चाहे प्रशासन हो लगातार गरीब जनता का ही दोहन हो रहा है। वहीं नेता करोड़ों की कमाई लूट कर मजे ले रहे हैं।