चकिया, चंदौली। स्थानीय विकास खंड में सफाई व्यवस्था का हाल बेहाल है। कारण यहां सफाईकर्मियों की तैनाती तो कागजों में दिखती है, लेकिन हकीकत में वे झाडू छोड़कर साहबों की गाड़ियां चला रहे हैं, दफ्तरों में बाबुओं की कुर्सी गर्म कर रहे हैं, साहब को लैंच टिफिन बनवा रहे हैं और कुछ तो वीवीआईपी लोगों की सेवा में हाजिर हैं। ऐसे में गांवों की गलियों में कूड़ा करकट का अंबार लगना लाजिमी है, और स्वच्छता अभियान की चमक फीकी पड़ना तय है।
आंकड़ों का मायाजालः पद एक, काम अनेक
स्थानीय विकास खंड अंतर्गत 89 ग्राम पंचायतों के दर्जनों राजस्व गांवों में कुल सैकड़ों की संख्या में सफाईकर्मी तैनात हैं। इनमें से भी कुछ गांव तो ऐसे हैं जिन्हें कागजों में ‘ना चिरागी’ घोषित कर दिया गया है, यानी वहां सफाईकर्मी की तैनाती ही नहीं है। अब जरा सोचिए, इतने बड़े इलाके की सफाई व्यवस्था कैसे चलेगी, और जब इनमें से भी दर्जनों ‘जुगाड़’ के तहत ब्लॉक में ड्राइवर, बाबू और बावर्ची जैसे महत्वपूर्ण पदों पर विराजमान हों, तो गांवों का क्या होगा।
नेताजी के खास और वीआईपी सेवक
सिर्फ साहब के बाबू और ड्राइवर, लैंच टिफिन बनवाने वाले ही नहीं, कई नेताजी तो कई सफाईकर्मी तो ऐसे हैं जो वीआईपी लोगों के साथ साए की तरह घूमते हैं। अब सवाल यह उठता है कि जब इतने सारे सफाईकर्मी ‘खास’ लोगों की सेवा में समर्पित हैं, तो आम गांव वालों की कौन सुनेगा। उनके घरों के सामने जमा कूड़े को कौन हटाएगा। स्वच्छता अभियान का नारा तो खूब बुलंद किया जाता है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में तो यह नारा साहब, नेताओं और बाबुओं की ‘सेवा’ में तब्दील हो गया है।
कूड़े के ढेर पर स्वच्छता का सपना
गांव-गांव में पसरी गंदगी इस बात का जीता जागता सबूत है कि चकिया में स्वच्छता अभियान महज एक कागजी कवायद बनकर रह गया है। जब सफाईकर्मी अपने मूल काम को छोड़कर अन्य कामों में व्यस्त रहेंगे, तो गांवों की सफाई भगवान भरोसे ही चलेगी। ऐसे में सरकार के स्वच्छता अभियान को पलीता लगना तय है, और आम जनता गंदगी और बीमारियों से जूझने को मजबूर है। यह देखना दिलचस्प होगा कि ‘जुगाड़’ के इस मकड़जाल को कब तोड़ा जाएगा और कब चकिया विकास खंड के गांवों को वाकई में सफाईकर्मियों की सेवा नसीब होगी।